Sources of indian ancient history प्राचीन भारत के इतिहास की स्रोत

प्राचीन भारत के इतिहास के स्रोत मुख्यत निम्न हैं-धर्मग्रंथ 2.एतिहासिक ग्रंथ 3.विदेशियों का विवरण 4.पुरात्विक साक्ष्य(अभिलेख,मुद्रा,मंदिर इत्यादि)5। साहित्यिक स्रोतख्यत 

इतिहास को तीन भागों में बाँट कर आध्यन किया जाता है

1.1. प्राग ऐतिहासिक काल
2. आद्द ऐतिहासिक काल
3. ऐतिहासिक काल

प्राग ऐतिहासिक काल - प्राग ऐतिहासिक काल के मनुष्य के जीवन का कोई लिखित विवरण नहीं है। इसके अंतर्गत हम पाषाणकाल को रखतेे हैं। हड़प्पा सभ्यता से पूर्व के काल को प्राग ऐतिहासिक काल कहा जाता है। इसका समय लगभग 3000 ईसापूर्व माना जाता है।

आद्द ऐतिहासिक काल - आद्द ऐतिहासिक काल के अंतर्गत सिंधु घाटी सभ्यता और वैदिक काल को रखते हैं। इसका समय 3000 ईसा ईसा पूर्व से 600 ईसा पूर्व माना जाता है। आध ऐतिहासिक काल की जानकारी पुरातात्विक और साहित्यिक दोनों स्रोतों मिलती है।एतिहासिक काल - 600 ईसा पूर्व से वर्तमान समय के काल को एतिहासिक काल कहते हैं। इस काल से हमें पुरातात्विक, साहित्यिक एवं विदेशी स्रोतों से जानकारी मिलती है।

(i) धर्मग्रंथ (Religious Literature)

वेद– इसका अर्थ होता है- महत् ज्ञान, अर्थात् पवित्र एवं आध्यात्मिक ज्ञान, संपूर्ण वैदिक इतिहास की जानकारी के स्रोत वेद ही हैं. इनकी संख्या चार है- ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद तथा अथर्ववेद.
वेदांग– इनसे वेदों के अर्थ को सरल ढंग से समझा जा सकता है. इनकी संख्या 6 है- शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छन्द तथा ज्योतिष.
ब्राह्मण ग्रंथ-वेदों की गद्य रूप में की गई सरल व्याख्या को ब्राह्मण ग्रंथ कहा जाता है.
आरण्यक– इसकी रचना जंगलों में की गई. इसे ब्राह्मण ग्रंथ का । अंतिम हिस्सा माना जाता है, जिसमें ज्ञान एवं चिंतन की प्रधानता है,
उपनिषद् – ब्रह्म विद्या प्राप्त करने के लिए गुरु के समीप बैठना, इन्हें वेदांत भी कहा जाता है
इनकी कुल संख्या 108 है, भारत का राष्ट्रीय आदर्श वाक्यसत्यमेव जयते मुंडकोपनिषद् से लिया गया है.
इसी उपनिषद् में यज्ञ की तुलना टूटी नाव से की गई है.
उपनिषदों से तत्कालीन भारत की राजनीतिक, सामाजिक एवं धार्मिक स्थिति की जानकारी मिलती है.
महाकाव्य– रामायण एवं महाभारत भारत के दो प्राचीनतम महाकाव्य हैं. उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर इनका रचनाकाल चौथी शताब्दी ई०पू० से चौथी शताब्दी ई० के बीच माना जाता है.
रामायण– इसके रचनाकार महर्षि बाल्मीकि हैं. संस्कृत भाषा में लिखे इस महाकाव्य में कुल 24000 श्लोक हैं. इससे तत्कालीन भारत की राजनीतिक, सामाजिक एवं धार्मिक स्थितियों की जानकारी मिलती है.

महाभारत– आरंभ में इसका नाम जयसंहिता था. इसके रचनाकार महर्षि वेदव्यास हैं. इसमें श्लोकों की मूल संख्या 8800 थी, लेकिन वर्तमान में कुल संख्या 1,00000 है. इसमें कुल 18 पर्व हैं.
श्रीमद्भागवतगीता भीष्मपर्व से संबंधित है. महाभारत का युद्ध 950 ई० पू० में लड़ा गया था, जो 18 दिनों तक चला, यह विश्व का सबसे बड़ा महाकाव्य है. इसे पाँचवें वेद के रूप में मान्यता मिली है.
 
पुराण-भारतीय एटिहासिक कथाओं का सबसे अच्छा क्रमबद्ध विवरण पुराणो से मिलता है,इसे पंचमवेद भी कहा जाता है|
इसके रचयिता लोमहर्ष तथा उनके पुत्र उग्रश्रवा हैं,इनकी संख्या 18 है इनमे से 5 में ही राजाओं की वंशावली पाई जाती है-1 मत्स्य , 2.वायु, 3.विष्णु, 4.ब्राह्मण ,5.भागवत
लोमहर्ष तथा उनके पुत्र उग्रश्रवा पुराणों के संकलनकर्ता माने जाते हैं. इनकी संख्या 18 है. इनमें मुख्य रूप से प्राचीन शासकों की वंशावली का विवरण है.
पुराणों में सर्वाधिक प्राचीन एवं प्रामाणिक मत्स्यपुराण है. यह सातवाहन वंश से संबंधित है.
विष्णु पुराण से मौर्य वंश तथा वायु पुराण से गुप्त वंश के विषय में जानकारी मिलती है.
बौद्ध साहित्य– यह मूल रूप से चार भागों में विभाजित है-जातक, त्रिपिटक, पालि एवं संस्कृत
जातक – यह बौद्धों का एक पवित्र ग्रंथ है. यह 550 कथाओं का एक संग्रह है. इसमें महात्मा | बुद्ध के पूर्व जन्मों की कहानियाँ वर्णित हैं,जिसमें महात्मा बुद्ध का जीवन चरित्र अनेक कथानकों में वर्णित है,हीनयान का प्रमुख ग्रंथ कथावस्तु है अजन्ता की चित्रकारी जातक की कहानियाँ दर्शाती है.
त्रिपिटक- त्रिपिटकों की भाषा प्राकृत है. ये तीन हैं- सुत्तपिटक, विनयपिटक एवं अभिधम्मपिटक,पालि ग्रंथ- प्राचीनतम बौद्ध ग्रंथ पालि भाषा में हैं.
मिलिंदपन्हो- इस बौद्ध ग्रंथ में यूनानी नरेश मिनाण्डर (मिलिंद) एवं बौद्ध भिक्षु नागसेन के बीच वार्तालाप का वर्णन है | दीपवंश- श्रीलंका (सिंहल द्वीप) के इतिहास पर प्रकाश डालने वाला यह पहला बौद्ध ग्रंथ है.
महावंश– इसमें मगध के राजाओं की क्रमबद्ध सूची है.
चूल वंश– इससे कैण्डी चोल साम्राज्य के विघटन की जानकारी मिलती है.
संस्कृत ग्रंथ
ललितविस्तार– संस्कृत भाषा में बौद्ध धर्म का यह पहला ग्रंथ है.
दिव्यावदान– इसमें शुंग वंश एवं मौर्य शासकों के विषय में वर्णन है.
जैन साहित्य– ये प्राकृत एवं संस्कृत भाषा में हैं, इन्हें आगम कहा जाता है.
आचराग सूत्र– इसमें जैन भिक्षुओं के विधि-निषेध एवं आचार-विचारों का वर्णन है.
भगवती सुत्र– इसमें महावीर स्वामी के जीवन तथा अन्य समकालिकों के साथ उनके संबंधों का विवरण है. इसी में 16 महाजनपदों का भी विवरण है.

(ii) एतिहासिक ग्रंथ (Historical literature)

संगम साहित्य– इसमें चोल, चेर तथा पांड्य राज्यों के उदय का वर्णन है. इसमें कविताओं की कुल 30,000 पंक्तियाँ हैं. ये कविताएँ दो मुख्य समूहों (1.पटिनेडिकलकणक्कु तथा 2. पतुपात्तु) में विभाजित हैं. पहला समूह बाद वाले समूह से पुराना है.
मनुस्मृति – यह सबसे प्राचीन एवं प्रामाणिक है. इससे तत्कालीन भारतीय राजनीतिक, सामाजिक एवं धार्मिक स्थितियों की जानकारी मिलती है. इसमें विवाह के आठ प्रकारों का उल्लेख है- ब्रह्म, दैव, आर्य, प्रजापत्य, गंधर्व, असूर, राक्षस एवं पैशाच. नोटः अनुलोम विवाह– उच्च वर्ग के पुरुष का निम्न वर्ग की स्त्री के साथ शादी करना अनुलोम विवाह कहलाता है.. प्रतिलोम विवाह- उच्च वर्ग की कन्या का निम्न वर्ग के पुरुष के साथ शादी करना प्रतिलोम विवाह कहलाता है.
नारद स्मृति– इससे गुप्तवंश के विषय में जानकारी मिलती है.
अर्थशास्त्र– आचार्य चाणक्य ( विष्णुगुप्त) या कौटिल्य द्वारा संस्कृत भाषा में रचित इस ग्रंथ को भारतीय राजनीति का पहला भारतीय ग्रंथ माना जाता है. लगभग 6000 श्लोकों वाले इस ग्रंथ में मौर्यकालीन राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक एवं धार्मिक स्थितियाँ वर्णित हैं.
मुद्राराक्षस– विशाखदत्त द्वारा रचित इस नाटक में चंद्रगुप्त मौर्य तथा उनके गुरु चाणक्य द्वारा नन्द वंश के पतन तथा मौर्य वंश की स्थापना का वर्णन है.
मालविकाग्निमित्रम्– कालिदास द्वारा रचित इस ग्रंथ में पुष्यमित्र शुंग एवं उसके पुत्र अग्निमित्र के समय की राजनीतिक स्थिति तथा शुंग एवं यवन संघर्ष का वर्णन है.
हर्षचरित– सम्राट् हर्ष के राजकवि बाणभट्ट द्वारा रचित इस ग्रंथ से हर्ष के जीवन एवं तत्कालीन भारतीय इतिहास के विषय में जानकारी मिलती है.
स्वप्नवास्वदत्तं – महाकवि भास द्वारा रचित इस ग्रंथ में वत्सराज उदयन एवं चंडप्रद्योत के संबंधों का उल्लेख है.
राजतरंगिणी – कल्हण द्वारा रचित इस पुस्तक का संबंध कश्मीर के इतिहास से है. इसे भारतीय इतिहास का प्रथम प्रामाणिक ग्रंथ माना जाता है.
मृच्छकटिकम्– शूद्रक द्वारा रचित इस नाटक से गुप्तकालीन इतिहास की जानकारी मिलती है.
विक्रमांकदेवचरित्– कश्मीरी कवि विल्हण द्वारा रचित इस ग्रंथ से चालुक्य राजवंश विशेषकर विक्रमादित्य पंचम के विषय में जानकारी मिलती है.
कीर्ति-कौमुदी– सोमेश्वर द्वारा रचित इस काव्य से चालुक्यवंशीय इतिहास की जानकारी मिलती है.
अवन्तिसुंदरी कथा– महाकवि दंडी द्वारा रचित इस ग्रंथ से दक्षिण भारत के पल्लवों के इतिहास की जानकारी मिलती है.
अष्टाध्यायी– पाणिनी द्वारा रचित संस्कृत व्याकरण की यह प्रथम प्रामाणिक पुस्तक है.

(iii)विदेशियों का विवरण

                 1.टेसियस: यह ईरान का राजवैद था,भारत के संबंध में इसका विवरण आश्चर्यजनक कहानियों से परिपूर्ण होने के कारण अविश्वशनीया है।
2.हेरोडोटस– इसे इतिहास का पिता कहा जाता है. इसने हिस्टोरिका नामक पुस्तक की रचना की,इसने अपनी पुस्तक हिस्टोरीका में 5वी के भारत तथा ईरान (फारस) के बीच आपसी संबंधों का वर्णन किया है.
3.मेगास्थनीज- यह चन्द्रगुप्त मौर्य के दरबार में सेल्यूकस निकेटर का राजदूत था. इसके द्वारा रचित इंडिका नामक पुस्तक में मौर्यकालीन नगर प्रशासन तथा कृषि,संस्कृति का वर्णन किया है.
4.डायमेकस- यह सीरियन नरेश अन्तियोकस का राजदूत था, जो बिन्दुसार के दरबार में आया था ,इसका विवरण भी मौर्य युग से संबन्धित है.
5.डायनोसियस- यह मिस्र नरेश टॉलमी फिलेडेल्फस का राजदूत था, जो अशोक के दरबार में आया था.
6.प्लिनी- इसने नेचुरल हिस्टोरिका नामक पुस्तक लिखी. इसमें भारतीय पशु, पेड़-पौधों, खनिज पदार्थों आदि का वर्णन है.
7..फाह्यान (399-415 ई०)- प्रथम चीनी यात्री जो चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के शासन काल में भारत आया था. अपनी पुस्तक में मध्य प्रदेश के  तत्कालीन भारतीय संस्कृतियों,राजनीतिक तथा सामाजिक स्थितियों का वर्णन किया है.
8..ह्वेनसांग (629-644ई०)- इसे यात्रियों के सम्राट् या यात्रियों के राजकुमार के नाम से भी जाना जाता है. यह सम्राट् हर्षवर्धन के शासनकाल में भारत आया था. इसके द्वारा लिखित यात्रा-वृतांत सी-यू-की से तत्कालीन भारत के संबंध में जानकारी मिलती है. इसने नालन्दा विश्वविद्यालय में अध्ययन तथा अध्यापन का कार्य किया,इस समय नालंदा विशविद्यालय के कुलपति आचार्या शीलभद्र थे।
9..इत्सिंग– यह भी एक चीनी यात्री था. इसने 670 ई० के आस-पास भारत के बिहार प्रदेश का भ्रमण किया था. इसने नालंदा विश्वविद्यालय में अध्ययन भी किया था,इसने अपने विवरण मेंविश्वविद्यालय तथा अपने समय के भारत का विवरण किया।
10.अलबरूनी-यह महमूद गजनावी के साथ भारत आया था ,उसकी कृति किताब-उल-हिन्द,याहकीक-ए-हिन्द
भारत की खोज आज भी इतिहासकारों के लिए महत्वपूर्ण स्रोत है।यह एक विस्तृत ग्रंथ है जो धर्म और दर्शन त्योहारो ,रीति रिवाजों तथा प्रथाओं' के बारे में बताता है।
11.तारनाथा-यह एक तिब्बती लेखक था कगयुर तथा तगयुर नमक ग्रंथ की रचना कीइसमे भारतीय इतिहास के बारे में जानकारी मिलती है।

(iv)पुरात्विक संबधि साक्ष्य

              पुरातात्विक स्रोत के अंतर्गत अभिलेख, मुद्रा, स्मारक आते हैं।

अभिलेख

सबसे प्राचीन अभिलेख मध्य एशिया के तुर्की में स्थित बोघजकोई अभिलेख है। यह 1400 ईसा पूर्व का है इस अभिलेख से 4 देवताओं की जानकारी मिलती है मित्र, वरुण, इंद्र और नासत्य। इस से ऋग्वेद की तिथि निर्धारण में मदत मिलती है।
विश्व में अभिलेखों का जनक डेरियस या दारा बाहु या दारा प्रथम को माना जाता है। डेरियस के पर्सीपोलिस अभिलेख से यह जानकारी मिलती है कि सिंध पर इसका इसका अधिपत्य था।भारत में अभिलेखों का जनक अशोक को माना जाता है। भारत में अशोक के अधिकांश अभिलेख ब्राह्मी लिपि में है जबकि अफगानिस्तान में आरमेइक लिपि तथा पाकिस्तान में खरोष्ठी लिपि में प्रचलित है तथा इरान में ग्रीक लिपि प्रचलित थी। ब्राह्मी लिपि को 1857 में जेम्स प्रिंसेप ने पढ़ा था। अशोक प्रथम शासक थे जिन्होंने जनता को अभिलेखों के माध्यम से संबोधित किया। समुद्रगुप्त का प्रयाग अभिलेख, राजाभोज का ग्वालियर अभिलेख, कलिंग नरेश का हाथीगुंफा अभिलेख, बंगाल के शासक विजय सेन का देव पारा अभिलेख तथा पुलकेशिन द्वितीय का ईलोह अभिलेख महत्वपूर्ण है। सातवाहन वंश ऐसा वंश है जिसका पूरा इतिहास अभिलेखों पर आधारित है। अभिलेख के अध्ययन को एपी ग्राफी कहा जाता है। प्राचीन तिथि के अध्ययन को पॉलीग्राफी कहते हैं।

मुद्रा

भारत का प्राचीनतम सिक्का आहत सिक्का या पंचमार्क है। साहित्य में इसे दासर्ज़न कहा गया है। यह 5वीं शताब्दी ईसा पूर्व का है। इस सिक्के पर 5 चिन्ह  मिलते हैं- पेड़, अर्धचंद्र, हाथी, मछली एवं साढ़। आहत सिक्का सबसे अधिक उत्तर प्रदेश एवं मगध से मिले हैं। सिक्कों पर सर्वप्रथम लिखने का कार्य यवनों ने प्रारंभ किया। भारत में सर्वप्रथम स्वर्ण सिक्का इंडो-बैक्ट्रियन ने जारी किया।

मंदिर

भारत में मंदिर तीन शैली में मिलते हैं, नागर शैली, द्रविड़ शैली तथा बेसर शैली। उत्तर भारत में सभी मंदिर नागर शैली में है तथा दक्षिण भारत में द्रविड़ शैली में मिलते हैं। दक्षिण भारत में जिन मंदिरों में दोनों शैलियों का प्रयोग किया गया है उसे बेसर शैली करते हैं। तंजौर का राजा राजेश्वर मंदिर द्रविड़ शैली का सर्वश्रेष्ठ मंदिर है।
खुदाई के दौरान प्राप्त वे पुरानी वस्तुएँ, जिनसे इतिहास की रचना में सहायता मिलती है, पुरातात्विक स्रोत कहलाती हैं. इनमें अभिलेख, मुद्रा, स्मारक आदि प्रमुख हैं. जॉन कनिंघम को भारतीय पुरातत्त्व का पिता कहा जाता है.
मुद्राएँ अथवा सिक्के प्राचीन भारत के गणराज्यों का अस्तित्व मुद्राओं से ही प्रमाणित होता है. उनपर अंकित तिथियों से कालक्रम को निर्धारित करने में सहायता मिलती है.प्राचीन सिक्कों का अध्ययन न्यूमिसमेटिक्स कहलाता है |भारत में प्राचीनतम सिक्का 5 वीं शताब्दी ई०पू० का है, जिसे आहत सिक्का (पंच मार्क) कहा जाता है. यह मुख्यतया चांदी धातु से निर्मित है.भारत में सर्वप्रथम सोने का सिक्का हिन्द-यवन शासक द्वारा जारी किया गया.भारत में सर्वाधिक सोने के सिक्के गुप्त शासकों द्वारा तथा शुद्धतम सोने के सिक्के कुषाण शासक कनिष्क द्वारा जारी किए गए.सातवाहन शासकों ने सीसा तथा पोटीन के सिक्के जारी किए. इन्होंने सोने के सिक्के जारी नहीं किएसर्वाधिक सिक्के मौर्योत्तर काल के तथा सबसे कम सिक्के गुप्तोतर काल के मिले है.अभिलेख – अभिलेख प्रायः स्तंभों, शिलाओं, ताम्रपत्रों, मुद्राओं, मूर्तियों, मंदिरों की दीवारों इत्यादि पर खुदे मिलते हैं. अभिलेखों का अध्ययन पुरालेखशास्त्र (Epigraphy) कहलाता है.भारत का सबसे पुराना अभिलेख हड़प्पा काल का माना जाता है, जिसे अभी तक नही पढ़ा जा सका है |प्राचीनतम पठनीय अभिलेख सम्राट् अशोक का है, जिसे पढ़ने में 1837 ई० में जेम्स प्रिंसेप को सफलता मिली थी.सर्वाधिक अभिलेख मैसूर में पुरालेख शास्त्री के कार्यालय में संग्रहित है |कुछ प्रमुख अभिलेखजूनागढ़ (गिरनार) अभिलेख– यह शक शासक रुद्रदमन प्रथम का अभिलेख है. यह संस्कृत भाषा का सबसे लंबा एवं प्रथम अभिलेख है.एन अभिलेख– इसे गुप्त शासक भानुगुप्त द्वारा जारी किया गया. इसी अभिलेख में सर्वप्रथम सती–प्रथा की चर्चा मिलती है.एहोल अभिलेख– यह बादामी के चालुक्य शासक पुलकेशिन द्वितीय का है, जिसे उसके मंत्री रविकीर्ति द्वारा तैयार किया गया था.हाथी गुम्फा अभिलेख– इसे कलिंग शासक खारवेल द्वारा जारी किया गया था. इसी अभिलेख में सर्वप्रथम ईस्वीवार घटनाओं का विवरण मिलता है.इलाहाबाद अभिलेख (प्रयाग प्रशस्ति)– मूल रूप से यह अभिलेख सम्राट् अशोक का है. बाद में इसपर हरिषेण द्वारा समुद्रगुप्त की उपलब्धियों को खुदवाया गया. आगे चलकर मुगल शासक जहाँगीर ने भी इसपर अपना संदेश खुदवाया.मास्की एवं गुर्जरा अभिलेख– ये दोनों ही अभिलेख सम्राट् अशोक के हैं, जिनमें क्रमशः अशोक प्रियदर्शी तथा अशोक नाम का उल्लेख है.भाबू एवं रुमिनदेयी अभिलेख– ये दोनों ही अभिलेख अशोक के हैं, जिनसे अशोक के बौद्ध धर्म के प्रति आस्था का पता चलता है.रूपनाथ अभिलेख– इस अभिलेख से अशोक के शैव-धर्म के प्रति आस्था का पता चलता है. पर्सीपोलिस व नक्श-ए-रुस्तम- इस अभिलेख में भारत तथा ईरान के संबंधों का वर्णन है.बोगजकोई (एशिया माइनर)– 1400 ई०पू० के इस अभिलेख में इन्द्र, वरुण, मित्र तथा नासत्य नामक चार देवताओं का उल्लेख हैl.




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